हेलो दोस्तो। मेरा नाम पारुल (उम्र २०) है। मैं अपनी ज़िन्दगी की पहली कामुक कहानी आप लोगों को पेश कर रही हूँ। इस कहानी की घटना कुछ हफ़्ते पहले घटी थी।
इस घटना के बाद मेरी ज़िन्दगी में काफ़ी बदलाव आए थे। मेरी कहानी की घटना कुछ इस तरह शुरू हुई थी।
एक दिन माँ को गाँव से फ़ोन-कॉल आया था। फ़ोन कॉल मेरे मामा ने किया था और उन्होंने कहा कि उनका और मामी का झगड़ा हो गया था और मामी उनसे तलाक मॉंग रही हैं। यह बात सुनते ही मेरी माँ उसी दिन घर से गाँव जाने के लिए निकल गई।
मेरे पापा माँ को स्टेशन छोड़कर घर लौट आए और मैंने तब उनके चेहरे पर एक अजीब-सी ख़ुशी देखी थी। माहौल गंभीर था और पापा के चेहरे पर ख़ुशी झलकती हुई देखकर मुझे बहुत अजीब लगा था।
अगले दिन पापा ऑफ़िस में नहीं गए और पूछने पर उन्होंने बताया कि वह घर पर ही मीटिंग करने वाले हैं। उन्होंने मुझसे कहा कि मैं दोपहर के समय अपनी किसी सहेली के घर जाकर वक़्त बिताऊ, ताकि मीटिंग की वज़ह से मुझे कोई दिक्कत न हो।
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मैंने पापा से कहा कि मुझे कोई दिक्कत नहीं होगी, क्यूँकि मैं तो अपने कमरे में ही रहूँगी। पापा मेरी बात नहीं माने और मुझसे कहने लगे कि मेरे घर पर रहने से उनके ऑफ़िस के दोस्त को परेशानी होगी। मैंने पापा की बात को मानकर उन्हें हाँ कह दिया।
मुझे डाल में कुछ काला नज़र आ रहा था, क्यूँकि इससे पहले पापा ने घर पर कभी अपने दोस्त को नहीं बुलाया था, मीटिंग रखना तो दूर की बात है।
मैंने सोच लिया था कि मैं घर से बाहर जाने का नाटक करूँगी और घर में होने वाली मीटिंग को छिपकर देखूँगी। मैं मौके का इंतज़ार करके बैठी थी। जब पापा टॉयलेट की ओर बढ़ने लगे थे, तब मैंने पापा से कहा कि मैं अपनी सहेली के घर जा रही हूँ।
पापा ने मुझे दरवाज़ा बंद करके जाने को कहा। मैंने घर का मुख्य दरवाज़ा खोला और बंद कर दिया। दबे पाँव चलकर मैं अपने कमरे में जाकर छिप गई। थोड़ी देर बाद, पापा ने लिविंग-रूम में बैठकर किसी को तो फ़ोन करके घर आने के लिए कहा।
१ घंटे बाद, घर की घंटी बजी और पापा दरवाज़ा खोलने के लिए चले गए। मैंने किसी औरत की आवाज़ सुनी थी, जिसके साथ पापा प्यार से बात करते हुए अपने कमरे में चले गए। मैं दबे पाँव चलकर पापा के कमरे की ओर बढ़ने लगी थी।
कमरे से दोनों की खिसियाने की आवाज़ आ रही थी। पापा ने उस औरत का नाम कविता करके लिया था। दरवाज़े के पास खड़े रहकर मैंने देखा कि कविता बिस्तर पर गुलाबी नाईट गाउन पहनकर लेटी थी और वह पापा को अपनी उँगलियों से इशारा करके अपने पास बुला रही थी।
पापा अपनी अंडरवियर उतारकर कविता के ऊपर कूद पड़े थे। उसके गोल-मटोल लटकते हुए चूचियों को दबोचकर उन्हें दबाने लगे। कविता पापा के होंठों को चूसकर उनकी चुम्मियाँ ले रही थी।
उन दोनों को देखकर लग रहा था मानो कोई प्रेमी-प्रेमिका बहुत दिनों बाद चुदाई कर रहे हो। पापा ने कविता की नाईट गाउन को उतार फेंका और उसे अपने ऊपर चढ़ा लिया। कविता की मोटी गाँड़ की दरार में उँगलियाँ फ़साकर पापा उसे दबाने लगे।
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कविता अपने हाथ को नीचे ले जाकर पापा के मोटे काले लौड़े को हिलाने लगी। दोनों एक दूसरे के होठों को चूस रहे थे। पापा ने कविता की गाँड़ की छेद में अपनी बिच वाली उँगली घुसा दी और उसे अंदर-बाहर करने लगे।
कविता सिसकियाँ लेकर पापा की चुंबन ले रही थी। पापा ने अपनी बिच वाली उँगली को कविता की गाँड़ की छेद से निकालकर अपने मुँह में भर दिया। उसके बाद उसी उँगली को कविता के मुँह में भी भर दिया।
[पापा:] चल मेरी रानी, बैठ जा अपनी गाँड़ मेरे चेहरे पर टिकाकर। तेरी गाँड़ की छेद को मैं अपनी थूक से साफ़ कर देता हूँ।
कविता उठकर पापा के मुँह पर अपनी चर्बीदार गाँड़ को रखकर बैठ गई। उसने पहले अपनी गाँड़ को पापा के चेहरे पर रगड़ना शुरू किया।
पापा ने उत्साहित होकर कविता के चूतड़ को पकड़ लिया और उन्हें फैलाकर अपनी ज़ुबान को उसकी गाँड़ की छेद के अंदर घुसाने लगे। कविता पापा के मुँह पर अपनी बड़ी गाँड़ को उछालकर पटकने लगी थी।
पापा ने अपनी उँगलियों से कविता की चूत की पँखुड़ियों को फ़ैलाना शुरू किया। कविता की चूत को खोलकर वह अपनी उँगली चूत पर रगड़ने लगे थे। कविता पापा का खड़ा हुआ लौड़ा देखकर आगे झुक गई और उसे अपने मुँह में घुसाकर अच्छे से चूसने लगी
थोड़ी देर के बाद, कविता पापा के ऊपर चढ़कर लेट गई। अपने हाथों से पापा के लौड़े को पकड़कर उसे अपनी चूत पर रगड़ा और फिर अंदर घुसा दिया। पापा कविता की गाँड़ को पकड़कर उसे अपने लौड़े पर ऊपर-नीचे उछालने लगे। कविता की मोटी गाँड़ जब पापा के पैरों से टकराती थी, तब ‘पच-पच’ करके आवाज़ आ रही थी।
उसकी गाँड़ की छेद भी खुल गई थी, जिसे पापा ने कुछ देर बाद अपनी उँगली घुसाकर बंद कर दिया। ज़ोर-ज़ोर से पापा कविता को अपने लौड़े पर उछालने लगे, जिससे कविता चिल्लाकर अपने उत्साह को जताने लगी थी।
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कुछ देर तक पापा कविता की ज़ोर-ज़ोर से चुदाई करते रहे और फिर रुक गए। पापा ने उठकर कविता को अपने गोद में बिठा लिया और उसकी गाँड़ को पकड़कर अपने लौड़े पर पटकने लगे।
कविता की मोटी और लटकती चूचियाँ पापा की छाती से टकरा रहे थे। पापा और कविता एक दूसरे की ज़ुबान बाहर निकालकर चाटने लगे। कुछ देर बाद, पापा ने कविता को घोड़ी बनाकर बिस्तर पर लेटा दिया था। कविता अपनी गाँड़ को हिलाने लगी थी।
पापा ने कविता की हिलती हुई गाँड़ को देखकर उसपर थप्पड़ मारकर उसके चीख़ें निकाल दिए। पापा ने कविता की गाँड़ की छेद पर अपने लौड़े की नोक को रखा और धीरे से धक्का मारकर उसे अंदर घुसा दिया। धीरे-धीरे धक्के मारते हुए पापा कविता की गाँड़ को चोद रहे थे। कविता की ज़ोर-ज़ोर से गाँड़ चोदते वक़्त पापा उसकी चूत को अपनी उँगलियों से रगड़ रहे थे।
गाँड़ के अंदर घुसते लौड़े ने कविता की हवस को इतना बढ़ा दिया था कि कविता की चूत से चिपचिपा पानी पापा की हथेली पर निकल गया। पापा की हथेली को कविता ने पकड़कर चाटना शुरू किया। कुछ देर बाद, पापा कविता की कमर को पकड़कर धीरे से अपने लौड़े को उसकी गाँड़ के अंदर-बाहर कर रहे थे।
पापा अपने लौड़े को कविता की फैली हुई चूत के अंदर घुसाकर उसकी चुदाई करने लगे थे। फिर आगे झुककर कविता के उछलते चूचियों को पकड़कर उन्हें दबाने लगे। पापा ज़ोर-ज़ोर से कविता की चूत पर अपने लौड़े को पटक रहे थे। कविता चिल्लाकर पापा को उकसाह रही थी।
कुछ समय और कविता की चुदाई करने के बाद पापा ने अपना लौड़ा कविता की चूत से निकाल दिया। कविता के पैर काँपने लगे थे और तभी उसने पेशाब की तेज़ धार अपनी चूत से निकाल दी जो बिस्तर पर गिर गया था।
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थोड़ी देर बाद, कविता मुड़कर पापा के लौड़े को चूसने लगी थी। ज़ोर-ज़ोर से पापा का लौड़ा अपने मुँह के अंदर-बाहर करने लगी थी। पापा ने कविता का सर पकड़कर उसके मुँह के अंदर अपने लौड़े का माल निकाल दिया था।कविता पूरे माल को निगल गई थी।
मैं अपने कमरे में जाकर इंटरनेट पर लड़कों के लौडों की तस्वीरें देखकर अपने आप को उकसाने लगी थी। मैंने अपना हाथ मेरी पैंटी में गुसाकर उँगलियों से अपनी चूत को रगड़ने लगी। कहानी की अगली कड़ी में मैं आप को आगे क्या हुआ वह बताऊँगी।